सत्य-संधान
ढह जने दो
रेत के इस महल को
तिनके-तिनके बिखर जाने दो
मैं देखना चाहती हूँ कि
क्या सभी मलवे
एक से लगते हैं
इस शमशान भूमि पर।
- आशा राय
यूँही
यूँहीं सुबह वो शाम हो ती है,
यूँहीं जिंदगी चुपके से तमाम होती है।
वो कमवख्त जिंदगी भी क्या होती है,
जिसमें न सुबह और न शाम होती है।
गिले-शिकवे वो शिकायत किससे करें,
हर चेहरे पे अजीव सी नकाव होती हैं।
ये जीना भी क्या जीना है मरे दोस्तों,
ज़ख्में दिल की न कोई बात होती है।
जमाने भर का बेशक ख्याल है तुम्हें,
करीव हैं हम क्यों निगाहें उदास रहती हैं।
आप तो फसादों के ज़ड़ खोदते रहते हैं,
पर यूँहीं हम से सारे मामले तमाम होती हैं।
ज़रा मुस्कुरा कर कभी देखो तो इधर ,
जिंदगी की शम्मा कैसे कुर्वान होती है।
- आशा राय
कोशी जब सीमाएँ
तोड़ लेती है
लोग भयभीत हो उठते हैं
पंजाब पुकारता है
कोशी के बेटों को
और वो
पत्नी के यौवन,-अरमन
पिता के गौरव का भार
माता के ममता का हार लिए
बच्चों के भविष्य का ताज बांधे
विदा हो जाता है भरे मन से
पिता दरवाजे की टूटी खाट पर
मां चौखट पकड़े बेसुध
सिसकती ममत्व से
पत्नी की आँखेंअविरल-व्याकुल
कोशी सी बहने लगती
और बहती रहती-----
कोशी के सूखने तक
पति के लौटने की आस - प्यास लिए
पर कोशी की बेटी
नहीं छोड़ पाती
मर्यादा की दहलिज़
जिसके बाहर कितने हीं
मगर -घड़ियाल
गिद्ध और चालाक भेड़िए
इस जंगल में
अपने अस्तित्व वो
मान परिवार का संभालती है।
सास के सूने आँखों की रौनक
स्वसुर के झुके कमर की बन लाठी
धड़कते दिल से राह देखती रहती----
पिया की चिट्ठी आने की
कोशी केसूखने की
बच्चों के पिता के लौटने की
प्रियतम की सूरत देखने की
फिर से चहकने की
पिया संग महकने की
कोशी की यंत्रणा को भूल कर
दुःख विरहा के घावों पर
स्नेह-प्रेम का मरहम लगाने की
आस-प्यास लिए।।
- आशा राय